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“गीत तुम्हारे”

मैं गीत तुम्हारे लिखता हूँ,
मैं गीत हमारे लिखता हूँ।

जब साथ होती थी शामें
जब कलम मैं और
हर्फ़ सारे थीं तुम
कागज़ पर तब उतरते थे ‘हम’

मैं गीत हमारे लिखता था,
मैं गीत तुम्हारे लिखता था।

कब्र होंगी ढेर सारी
एक मेरी और तुम्हारी
स्याही तब फिर लाल होगी
फिर कयामत रात सारी

गीत तुम्हारे लिखेगी
गीत हमारे लिखेगी।

मैं गीत तुम्हारे लिखता हूँ,
मैं गीत हमारे लिखता हूँ।

© ऋषभ बादल