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“हाँ तुम वही हो”

मन वंचित किंचित न था,
हृदय विरह किये जा रहा था।
अरे हाँ तुम वही हो,
जिसे खोज़ा जा रहा था।


रात नयन कोई स्वप्न न था,
पहर आठों एक चित्र उकेरा जा रहा था।
अरे हाँ तुम वही हो,
जिसे खोज़ा जा रहा था।


रूह अमर पर तन न था,
लिए नीर नयन जिए जा रहा था।
अरे हाँ तुम वही हो,
जिसे खोज़ा जा रहा था।


जीवन अवसादी किंचित न था,
मस्तिष्क उन्मादी हुए जा रहा था।
अरे हाँ तुम वही हो,
जिसे खोज़ा जा रहा था।


– ऋषभ बादल