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“वो पागल सी”

वो पागल सी रहती थी, कहती थी
मुझे पढ़ना है, कुछ बनना है।
मैं कहता, तुझे कौन है रोकता,
मुझे बता जो भी हो टोकता।
वो कहती तू कुछ ना कर पाएगा,
मेरे ही सामने मेरे घर वालों से ना लड़ पाएगा।

वो पागल सी रहती थी, कहती थी
मुझे प्यार करो, मेरे साथ रहो।
मैं कहता, मैं तो यहीं हूँ तेरे पास,
हर लम्हा करता हूँ तुझको प्यार, तू सच में है खास।
वो कहती ऐसे सर पर मत चढ़ा मुझको,
तू नहीं चुरा पाएगा मेरी इस दुनिया से मुझको।

वो पागल सी रहती थी, कहती थी
ये जो शाम गुजर जाएगी तेरी बाहों में,
बहुत याद आएगा तू उन आने वाली रातों में।
मैं कहता, तू क्यों परेशान होती है इन बातों से?
तुझे मैं चुरा लूँगा यमराज के भी ख्वाबों से।
वो कहती तू पागल है ऐसा कभी नहीं होता,
एक साल बाद पक्का हो जाएगा मेरा रोका।

वो पागल सी रहती थी, कहती थी
ना पढ़ पाऊँगी, ना तेरी बन पाऊँगी।
मैं कहता, ऐसा मत सोचा कर,
अरे कभी तो अपने प्यार पर भरोसा कर।
वो कहती चल कर लिया भरोसा,
अब खिला ना मुझको डोसा और समौसा।
उसकी इस बात पर हम दोनों हँसते थे,
नादां थी वो, तभी तो उसपर हम मरते थे।

वो पागल सी रहती थी, कहती थी
मुझे शो देखना है रात का, तेरे साथ का।
मैं कहता चल ठीक है, हम देखेंगे
गाड़ी मैं चलाऊंगा हर बार उससे कहता था।
वो कहती ठीक है पर बाद में मुकर जाती,
हर बार गाड़ी चलाकर वो ही मुझे लाती।
इस बार मंजूर ना था किस्मत को यह खेल,
खत्म कर दिया उसने हम दोनों का यह मेल।

वो पागल सी रहती थी, कहती थी
मैं मर गई अगर, तो क्या कंधा देने आओगे?
मेरा इतना भारी बोझ उठा पाओगे?
मैं कहता था उससे ऐसा मत बोला कर,
डोली लेकर आऊँगा मैं अब तेरे घर।
पर ये क्या समय आया था,
डोली ना थी दूर तक सिर्फ घना साया था।
बरसात ने मेरे आँसुओ को छिपा था लिया,
अपने दर्द-ए-ज़हर के एक-एक घूँट को मैंने खुद था पिया।

वो पागल सी रहती थी, कहती थी…

-ऋषभ बादल