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“लम्हा”

वो मिली अगर कभी, तो उससे पूछुंगा
उस लम्हे में क्या था कि तू मेरे पास आई थी
कोई वादा नहीं किया था मगर,
साथ रहने की कसम तो खाई थी ।

वो मिली अगर कभी, तो उससे पूछुंगा
उस लम्हे को लौटा सकती हो क्या, जिस लम्हे
मैंने सोच लिया था, बस अब बस…
मेरी साँसों की शुरुआत भी तुझी से होगी
और आखिरी धड़कन भी तेरे नाम होगी ।

वो मिली अगर कभी, तो उससे पूछुंगा
उस लम्हे को साथ जीना चाहोगी फिर से
जिसमे तुमने मेरा हाथ पकड़ा था और धीरे मगर
प्यार से बोला था कि
इस हाथ को कभी मत छोड़ना
तुम्हारे बिना तन्हा नहीं रह पाऊँगी
मैंने भी तुम्हारे उस हाथ को कसकर पकड़के
जब तुम्हे गले लगाया था
तुमने अपने आँसुओं से मुझे भिगाया था ।

वो मिली अगर कभी, तो उससे पूछुंगा
उस लम्हे क्या हुआ था हमारे बीच
तू दूर जा रही थी, और मैं रो रहा था आँखें मीच
क्यों तू मुझे ना सुन पाई थी तब
कयामत मेरे पास आई थी जब ।


– ऋषभ बादल