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“मोह भंग”

उन्मद चित्त हुआ मेरा,
जब प्रीति लागी तेरे संग।
फिर हृदय भी रोया था मेरा,
जब हुआ था तेरा मोह भंग।


उन्माद तुझसे था मेरा,
पर कर दिया तूने मुझको दंग।
बाद कभी मुड़के ना घर देखा मेरा,
जबसे हुआ था तेरा मोह भंग।


नैनो में एक चमक दिखी थी,
हो गया था पूरा मैं मलंग।
अब उनमें बस पानी करता छल-छल,
रास ना आया मुझे तेरा मोह भंग।


बेरंगा सा था जीवन मेरा,
तूने दिए थे उसको सारे रंग।
अब चरागों को ढूँढता हूँ मैं अकेला यहाँ,
इस तरह अंधकार दे गया तेरा मोह भंग।


– ऋषभ बादल