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“मैं रो रही थी”

मैं रो रही थी इश्क के दर्द में,
जब तुम आये थे मेरे पास में।
इश्क,मोहोब्बत,प्यार,वफ़ा,कसमे,वादे
सब भूल चुकी थी,
या कह दूँ कि कोशिश जारी थी।
पर तुमने फिर सिखाया मुझे कि,
कितना प्यारा होता है पड़ना
इन इश्क के अफसानों में।

मैं रो रही थी ये सोचकर,
कि क्यों मलाल होता है किसी के यूँ चले जाने से,
पर तुम जब मिले सब दर्द भूल गयी मैं,
अब क्या फर्क पड़ता है जब तुम हो मेरे पास
और किसको डर है ज़माने से।

मैं रो रही थी जब तुमने मुझपे शक किया,
क्या इसीलिए मैंने तुमसे बस तुमसे इश्क़ किया?
इतना भी भरोसा नहीं जब मुझपर तो,
तुमने क्यों ये इश्क़ का ढोंग किया?

मैं रो रही थी उस पल को याद करके,
जब दाखिल हुए थे मुझमे तुम।
क्या उस लम्हे नहीं बता सकते थे, कि
इस तरह मुझसे दूर हो जाओगे तुम?

-ऋषभ बादल