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“मन व्यथित है”

मन व्यथित है, जिसके बारे
तन विदित है।
कर नहीं सकता है फिर भी,
उसके बारे, जो उचित है।


रंजीदगी को घोलकर है पी गया,
इसलिए ये हाल उसका हो गया।
कह सका ना कुछ भी उसको, प्रिय था
पर खुदी में गम को पीकर सो गया।

मन बड़ा चंचल था तन का, एक समय था
आज देखो कितना बेरंग हो गया।
उसके अंदर हो रही है जो घुटन,
जिसके बारे, तन विदित है।
कर नहीं सकता है फिर भी,
उसके बारे, जो उचित है।


मन व्यथित है, जिसके बारे
तन विदित है।
मौन क्यों बैठा है फिर भी, उसके बारे
क्या ये उचित है?


– ऋषभ बादल