तू मिली जब फेसबुक पर पहली बार
बस उतने में ही हो गया मुझको तुझसे प्यार
बहुत गौर से देखा तेरी इक-इक तस्वीर को, बार-बार
कुछ को फ़ोन में ज़ूम इन किया तो कुछ को बस आंखों से
तस्वीरों में ही तुझे अपना मान लिया और एक ही ख्याल आया कि,
कभी दूर ना जाना तू इन बाहों से
माना बहुत दूर का सोच लिया था,
हाँ, अभी तो बाँहे छोड़ो तू तो सामने भी नहीं थी
और तू हो ही जाए मेरी, इस बात की क्या गारंटी थी?
फिर भी खुद को जबरन तेरा बना बैठा,
और सेंट रिक्वेस्ट पर क्लिक कर बैठा…
दबाते हुए वो बटन, दिल मे बैचेनी छाई थी
क्योंकि, उस रात भी तो तू सपनो में आई थी
माना बहुत जल्दबाजी कर रहा था मैं इसमे लेकिन,
कुछ सोचकर ही तो तूने एक्सेप्ट वाली बटन दबाई थी…
सिलसिला अब मैसेंजर पर पहुँच गया था,
हाय! कैसा रहा दिन तूने भी तो पूछा था
तेरी इक-इक बात दिल मे उतरती जा रही थी
क्या खता थी मेरी कि तू इतना पास आ रही थी?
कभी-कभी तो तू जल्दी जवाब देती और कभी बहुत देर लगाती
ऐसी ही बहुत सी बातें तुझको ख़ास बनाती
ऑनलाइन देखकर ही मैं मैसेज भेज देता था
अरे जवाब दे ही देगी, फिर यही सोचकर बैठता था
धीरे-धीरे दोस्ती गहराती चली गई, और
जितना उससे शुरू में प्यार था , उसको वो बढ़ाती चली गई
अब तो तेरी आवाज सुननी है बस यही धुन छाई थी,
नंबर दे और फोन उठा या नंबर ले और फोन लगा, मैंने बस यही रट लगाई थी
उसने नंबर तो दिया पर फोन करने की बात को टाला था,
व्हाट्सएप पर मेरे मैसेज करते ही उसने, वॉइस मैसेज डाला था…
फिर एक बार मेरे अंदर और समा गई थी वो
ब्यूटी विथ ब्रेन का कांसेप्ट अच्छे से समझा गई थी वो
हाँ जानता हूँ कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रहा हूँ
कुछ चीज़ें जबरन लिख रहा हूँ ,
तू भी तो अपनी वाली के बारे में ऐसे ही बोलता होगा
अरे मेरी हटा, अपनी बता ,
तू खुद पता नहीं क्या-क्या सोचता होगा ।
तो आगे है कि…
फिर एक दिन मैंने बड़ी हिम्मत जुटाई थी
मिलकर प्रपोज करने की योजना बनाई थी
सूट-बूट पहन कर था तैयार मैं, और पता है
उस दिन मैंने टाई भी लगाई थी
वो भी तो उस दिन सज-सवरकर आई थी
और ये क्या, सुंदर दिखने के लिए एक बिंदी भी लगाई थी
कौन समझाए उसे कि वो वैसे ही इतनी सुंदर है
ना सोलह श्रृंगार ना मेकअप,
बस देखने के लिए मेरी जैसी आंखों की जरूरत है…
हम दोनों और हमारे कॉफी के कपों के बीच,
बस उस मेज़ जितनी दूरी थी
जो कि ना मैं चाहता था और ना ही मेरा कॉफी का कप ,
लेकिन क्या करें ये हम दोनों की मजबूरी थी।
कॉफी पीते-पीते एक गुलाब उसकी तरफ बढ़ाया था
उसको अपना बनाना चाहता हूँ, ये भी बताया था
सुनकर उसने कॉफी पीना छोड़ दिया, उठकर खड़ी हुई,
और अपना रुख बाहर की तरफ मोड़ दिया
जाने क्यों मैं रात तक उस फूल को लिए वहीं बैठा रहा ,
उसके मैसेज के इंतजार में अपना फोन चेक करता रहा ,
उसके बाद कई दिनों तक बात करने की कोशिश की
उसका जवाब नहीं आया, शायद वो मुझसे रूठी थी
इंतजार में उसके जवाब के , कई महीने बीत गए
हम भी उसके प्यार में देवदास बन गए
पर शायद अभी इस दिल ने हार नही मानी थी,
थोड़ी ही सही पर उसके दिल मे जगह तो बना ली थी
उस दिन शाम को फोन पर नोटिफिकेशन आया
खोलकर देखा तो वही थी, अरे उसी का मैसेज आया
“उस दिन के लिए माफ कर दो, कल वहीं मिलते हैं,” उसने लिखा था
ये देवदास फिर से दीवाना बनकर , उससे मिलने चला था ।
Rishabh Badal