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जो तुम

रोज सोचता हूँ क्या लिखूं ? क्या कहूँ ? कैसे कागज पे उतारूँ अपनी भावनाओ को ? उनको जो मेरे दिल के कोने – कोने में अपना एहसास जताती रहती हैं । उनको जो हरपल मेरी आँखों में तुम्हारा अक्स उतरती रहती हैं । हाँ मेरी तुम्हारे लिए प्यार की भवनाएँ ।

आज वेलेंटाइन डे है , ” प्यार का दिवस ” । लेकिन सच तो ये है कि मुझे इस दिन की कोई आवश्यकता ही नहीं है । मैं तो हर दिन , हर पल तुम्हारी याद , तुम्हारे प्यार , तुम्हारी तस्वीर के साथ जीता हूँ । इस तरह मैं मेरा प्रत्येक दिन प्रेम दिवस के रूप में ही मनाता हूँ । सोचा आज तुम्हे बता दूँ कि मेरी भावनाएं अब मेरे दिल के कोनो में छिपकर नहीं रह सकती । अब ये बाहर आकर तुम्हारे दिल में समाना चाहती हैं । इतना सोचते ही कलम हाथ में आ गयी और तुम्हारे लिए पैगाम लिख गयी ।

जो तुम ना समझोगे हमें ,
तो कौन समझेगा ?
जो तुम ना जानोगे हमे ,
तो कौन जानेगा ?
जो तुम ना चहोगे हमें ,
तो कौन चाहेगा ?
जो तुम ना पाओगे हमें ,
तो कौन पायेगा ?
जो तुम ना दोगे साथ हमारा ,
तो कौन देगा ?
जो तुम ना थामोगे हाथ हमारा ,
तो कौन थमेगा ?
जो तुम ना बने जीने की वजह हमारी ,
तो कौन बनेगा ?
बस रोज युहीं तड़पते हमें ,
ये ज़माना देखेगा ।

क्या कोई कीमत लगी है बाजार में इश्क़ की ,
जो हमें यूँ बिठाकर रखा है ?
नीलामी की इस सभा में हमें ,
खरीददार बना के रखा है ।
गर नाही है ऐसा कुछ भी
तो हमे बताती क्यों नहीं ,
किसलिए यूँ सरेआम हमें
आशिक़ बना कर रखा है ?
इंतज़ार की इंतेहा अब ख़त्म होने को है ,
नीलामी की ये सभा ख़त्म होने को है ।
हमे बता दो क्या करें हम ,
इश्क़ अपना जताने को ?
चीर के दिल अपना दिखादें तुझे ,
उसमे छिपे तेरे अक्स को ?
या रखकर अपने लव तेरे लवों पे ,
भरदें तुझको हम खुद से ?
जो तुम ना बुझाओगी ये आग ,
जो तुमने लगाई है इस दिल में ,
तो कौन बुझाएगा ?
जो तुम ना पुकारोगी मरने से पहले हमें ,
तो कौन पुकारेगा ?
कौन उठाएगा ?
कौन सीने से लगाकर हमें , हमारी धड़कनो में
अपनी धड़कने मिलाएगा ?

-Rishabh badal