है ख़्वाहिश कि बारिश हो आँसूओं की तेरी आँखों से भी,
यूँ हर वक़्त मेरा अकेले रोना अब मुझे अच्छा नहीं लगता।
लाल हुए थे पहले ये, पर अब तो मुर्झा गए हैं,
मेरे नैनों का ये हाल अब मुझे अच्छा नहीं लगता।
मर मिटता था जिनपर मैं, अब देखूँ तो चुभते हैं,
तेरे नैनों का श्रृंगार अब मुझे अच्छा नहीं लगता।
Rishabh Badal